Din Kuch Aise Guzarta Hai Koi
दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई
दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई
जैसे एहसान उतारता है कोई
दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई
आईना देख कर तसल्ली हुई
आईना देख कर तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई
हम को इस घर में जानता है कोई
हम को इस घर में जानता है कोई
हम को इस घर में जानता है कोई
पक गया है शजर पे फल शायद
पक गया है शजर पे फल शायद
फिर से पत्थर उछालता है कोई
फिर से पत्थर उछालता है कोई
जैसे एहसान उतारता है कोई
दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई
तुम्हारे गम की डली उठा कर, जबा पे रख ली है देखो मैंने
ये कतरा-कतरा पिघल रही है, मै कतरा- कतरा ही जी रहा हूँ
देर से गूँजतें हैं सन्नाटे
देर से गूँजतें हैं सन्नाटे
जैसे हम को पुकारता है कोई
जैसे हम को पुकारता है कोई
जैसे हम को पुकारता है कोई
दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई
जैसे एहसान उतारता है कोई