Rudrashtakam
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदः स्वरूपम्
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाशमाकाशवासं भजेहम्
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं
गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम्
करालं महाकाल कालं कृपालुं
गुणागार संसारपारं नतोऽहम्
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं
मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम्
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा
लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजंगा
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
चलत्कुण्डलं भ्रू शुनेत्रं विशालं
प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम्
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं
प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
प्रचण्डं प्रकष्टं प्रगल्भं परेशं
अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम्
त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणिं
भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम्
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी
सदा सज्जनान्ददाता पुरारी
चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
न यावद् उमानाथपादारविन्दं
भजन्तीह लोके परे वा नराणाम्
न तावद्सुखं शांति सन्तापनाशं
प्रसीद प्रभो सर्वंभूताधिवासं
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
न जानामि योगं जपं नैव पूजा
न तोऽहम् सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम्
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं
प्रभो पाहि आपन्नामामीश शम्भो
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
रूद्राष्टकंमिदं प्रोक्तं विप्रेण हर्षोतये
ये पठन्ति नरा भक्तयां तेषां शंभो प्रसीदति
इति श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं सम्पूर्णम्