Mirza Ve [Male]

Manoj Muntashir Shukla

शहरे दिल की रौनक तू ही
तेरे बिन सब खाली मिर्ज़ा
तू ही बता दे कैसे काटू
रात फिराखा वाली मिर्ज़ा
मिर्ज़ा वे सुन जा रे
वो जो कहना है कब से मुझे
शाहिद हैं सैयाँ रे
इक पल मैं ना भूला तुझे
मिर्ज़ा तेरा कलमा पढ़ना
मिर्ज़ा तेरी जानिब बढ़ना
तेरे लिए खुदा से लड़ना
मिर्ज़ा मेरा जीना-मरना
सिर्फ़ तेरे इशारे पे है
ऊओ सिर्फ़ तेरे इशारे पे है

चाँद वाली रातों में
तेरी शोख यादों में
डूब-डूब जाता है यह दिल
मोम सा पिघलता है
बुझता ना जलता है
देख तू कभी आके गाफील
मिर्ज़ा वे सुन जा रे
वो जो कहना है कब से मुझे
शाहिद हैं सैयाँ रे
इक पल मैं ना भूला तुझे
मिर्ज़ा तेरा कलमा पढ़ना
मिर्ज़ा तेरी जानिब बढ़ना
तेरे लिए खुदा से लड़ना
मिर्ज़ा मेरा जीना-मरना
सिर्फ़ तेरे इशारे पे है
ऊओ सिर्फ़ तेरे इशारे पे है

ओ ख़ुदाया सीने में ज़ख़्म इतने सारे हैं
जीतने तेरे अंबर पे तारे
जो तेरे समंदर हैं
मेरे आँसुओं से ही
हो गये हैं खारे-खारे
मिर्ज़ा वे सुन जा रे
वो जो कहना है कब से मुझे
शाहिद हैं सैयाँ रे
इक पल मैं ना भूला तुझे
मिर्ज़ा तेरा कलमा पढ़ना
मिर्ज़ा तेरी जानिब बढ़ना
तेरे लिए खुदा से लड़ना
मिर्ज़ा मेरा जीना-मरना
सिर्फ़ तेरे इशारे पे है
ऊओ सिर्फ़ तेरे इशारे पे है

Curiosità sulla canzone Mirza Ve [Male] di Sonu Nigam

Chi ha composto la canzone “Mirza Ve [Male]” di di Sonu Nigam?
La canzone “Mirza Ve [Male]” di di Sonu Nigam è stata composta da Manoj Muntashir Shukla.

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