Madhdham
कृष्णा तुम छुपे हो कहाँ
सोचने राधा की उन
तेरे मन खुश कर दूँ मैं
फूलों से पूजूं तुझे
सा रे गा मा पा न सा
मध्धम धुप वो बरसे
नदी यमुना भी परियों सी चमके
बनके मस्त बहारें
छू ले आजा मेरे पास तू आजा
छोटे छोटे वो बारिश के
बूँदें मुझपे गिर बिखरे
मैं मुझमे ही नहीं हूँ
खोयी हूँ मैं कहीं पिया
मन आसमा पे झूला झूले
जान मेरी तू हैं ये बोले
मेरे पिया मैं यूँ ही हमेंशा
खोयी रहूं मैं बाहों में तेरी
मध्धम धुप वो बरसे
नदी यमुना भी परियों सी चमके
बनके मस्त बहारें
छू ले आजा मेरे पास तू आजा
जादू करके मुझपे
तूने ये कहाँ फसाया
आँखों से इशारे करके
दिल में यूँ बसाया
जब से देखा तुझको
तबसे पलकें ना झुकाया
ऐ मेरे खुदा तू
कैसे हुस्न ये बनाया
तेरे दिल में मैं बस जाऊं
मेरी जान की बन गयी जान तू
पिया मेरे मैं हुई तेरी
ये रिस्ता का है नाम क्या
ये रिस्ता ऐसा है
जैसे संगम है संगीत ताल का
छोटे छोटे वो बारिश के
बूंदें मुझपे गिर बिखरे
मैं मुझमे ही नहीं हूँ
खोयी हूँ मैं कहीं पिया
शेहद का मैं भवरा
बनके ढूंढता हु आया
वीणा को हसीन सुर
तेरे बोल से ही आया
सात रंग के वो
रंगे ज़िंदगी में आये
हर ख़ुशी हमारे
जीवन से जुडी सी जाये
फूलों की खुशबू हो तुम
चाँद की मूरत हो तुम
सुर से ताल जुडी जैसे रहे
हम मिलके यूँ सदा
तन से भी मन से भी नहीं
होंगे कभी हम कसम से जुड़ा
मध्धम धुप वो बरसे
नदी यमुना भी परियों सी चमके
बनके मस्त बहारें
छू ले आजा मेरे पास तू आजा