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Rajan Batra
कभी कभी लागे रहा अनसुना
जो भी मन में लागे कहा अनकहा
कभी कभी लागे रहा अनसुना
जो भी मन में लागे कहा अनकहा
किनारे किनारे पे रह गयी, नैय्या रे
सवालों भरे हो ये सारे नज़ारे
रोज़ रोज़ आते हो
आंखें क्यों चुराते हो
हैं मुझे लगे जैसे
खुद को ही छुपाते हो
रोज़ रोज़ आते हो
आंखें क्यों चुराते हो
हैं मुझे लगे जैसे
खुद को ही छुपाते हो
ऐसा क्या भला
मन में खेल रहा
हाँ ऐसा क्या भला
मन में खेल रहा (हाँ)