Kaifiyat

दिल में सोज़ नहीं, लब पे साज़ नहीं
शम्मा तो जल रही कोई परवाना नही
अंगारो को कैद कर पाए दीवाना नही
सोया हुआ दौर बेदार ज़माना नही
बे फ़िकर, बे सबर, ज़िम्मेदारियों से दूर
भीड़ जिधर चलती,चल दिये,जी हुज़ूर
और, वक़्त के तकाज़े में ढल गए
ग़फ़लत के मोह तले बेच डाला हर उसूल
इम्तेहान, ज़िन्दगी है कुछ तुम्हे याद नही
हर कदम मायुसी का कुछ अहसाह नहीं
राह में - तकलीफ़े आती है, आएगी
पर तुम्हे बढ़ना हैं ग़ुलामी जो रास नही
दिल मे - सोज़ नही,ताप नही,ताब नहीं
तह-दर-तह गहराते, जज़्बात नहीँ
सतही ज़िन्दगी गुज़ारना मंज़ूर तुम्हें
जीने में रस नही, चाहे फिर स्वाद नही

ख़ून हुआ दिल, शम्मा जलाई हैं
शायरी के लुत्फ़ की बज़्म सजाई है
फुरक़त में ज़िन्दगी निभाई है
हिज्र की राते गीन गीन बिताई है
ख़ून हुआ दिल, शम्मा जलाई हैं
शायरी के लुत्फ़ की बज़्म सजाई है
फुरक़त में ज़िन्दगी निभाई है
हिज्र की राते गीन गीन बिताई है

जंगे उन्ही की हथियार भी उन्ही के
जज़्ब होते दिलो में नज़रिये भी उन्ही के
लूटता ये बाजार फिर तुम्हे शौक़ से
हर बड़े चौराहे पे, इशतेहार भी उन्ही के
सोई हुई नस्ले, ग़फ़लत मंज़ूर तुम्हे
दिल मसोस जाए बेबसी मंज़ूर तुम्हे
ठोकरे हज़ार आये दिल टूटे मात खाये
कैसी तकलीफ़े ग़ुलामी मंज़ूर तुम्हे
मस्ती में मग़रूर जवानी का फ़ितूर
जिम्मेदारी से दूर अय्याशी से मजबूर
ज्ञान की ज्योत के ताप से महरूम
मकसदे हयात के इल्म से बे-शऊर
ज्ञान, विज्ञान, साहित्य की ज़रुरत
ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा किताबो की अहमियत
पर नाज़ नही, पर तुम्हे याद रहे
मिट गई वो सारी क़ौमे जिन्हें तारीख़ याद नही

ख़ून हुआ दिल, शम्मा जलाई हैं
शायरी के लुत्फ़ की बज़्म सजाई है
फुरक़त में ज़िन्दगी निभाई है
हिज्र की राते गीन गीन बिताई है
ख़ून हुआ दिल, शम्मा जलाई हैं
शायरी के लुत्फ़ की बज़्म सजाई है
फुरक़त में ज़िन्दगी निभाई है
हिज्र की राते गीन गीन बिताई है

मिट गई सारी क़ौमे जिन्हें तारीख़ याद नहीं
बंट गई जातो में , मुक़्क़मल इत्तिहाद नहीं
गर्दिश दौर की बुझा देगी इंक़लाब
भड़की न आतिश गर, बर्क़ तबियते नही
इंसाँ- हो अगर इंसाँ वाले तेवर रखो
जिंदा दिल अभिमान के ज़ेवर रखो
ज़र्रों सा ना, आफ़ताब सा मंज़र रखो
खार सा ना आसमान सा कहर रखो
फूलों की महक, महकाने वाले बनो
जीवन का दर्द अपनाने वाले बनो
मेहनत की ललक में इठलाने वाले बनो
मन्ज़िल को पाके इतराने वाले बनो
गिरेबाँ, सील , निकलो जहाँ में तुम
टूटा दिल जोड़ अब निकलो जहाँ में तुम
बित गई, बात गई, आई ये, सुबह नई
एतबार दिल मे लेके निकलो जहाँ में तुम

ख़ून हुआ दिल, शम्मा जलाई हैं
शायरी के लुत्फ़ की बज़्म सजाई है
फुरक़त में ज़िन्दगी निभाई है
हिज्र की राते गीन गीन बिताई है
ख़ून हुआ दिल, शम्मा जलाई हैं
शायरी के लुत्फ़ की बज़्म सजाई है
फुरक़त में ज़िन्दगी निभाई है
हिज्र की राते गीन गीन बिताई है

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