Jis Rah Se Rath Par Nikla Tha
Biju Narayanan, K. S. Chithra
जिस राह से रथ पर निकला था उस राह पे पैदल आज चले
प्रतिशोद की आग लिए मन मे अपमान की कालिख मुख पे मले
जब राम विमुख हुआ राम समुख तो अहं ब्रह्मास्मि के पंख जले
तब टूटता है उचाई का भ्रम जब आता है ऊँट पहाड़ तले