Ghunghroo Ki Tarah Bajta Hi Raha

RAVINDRA JAIN, Raj Kavi Indit Singh

घुँघरू की तरह बजता ही रहा हूँ मैं
घुँघरू की तरह बजता ही रहा हूँ मैं
कभी इस पग में कभी उस पग में बँधता ही रहा हूँ मैं
घुँघरू की तरह बजता ही रहा हूँ मैं

कभी टूट गया कभी तोड़ा गया
सौ बार मुझे फिर जोड़ा गया
कभी टूट गया कभी तोड़ा गया
सौ बार मुझे फिर जोड़ा गया
यूँ ही लूट लूट के और मिट मिट के
बनता ही रहा हूँ मैं
घुँघरू की तरह बजता ही रहा हूँ मैं

मैं करता रहा औरों की कही
मेरी बात मेरे मन ही में रही
मैं करता रहा औरों की कही
मेरी बात मेरे मन ही में रही
कभी मंदिर में, कभी महफ़िल में
सजता ही रहा हूँ मैं
घुँघरू की तरह बजता ही रहा हूँ मैं

अपनों में रहे या गैरों में
घुंघरू की जगह तो है पैरों में
अपनों में रहे या गैरों में
घुंघरू की जगह तो है पैरों में
फिर कैसा गिला जग से जो मिला
सहता ही रहा हूँ मैं
घुँघरू की तरह बजता ही रहा हूँ मैं
घुँघरू की तरह बजता ही रहा हूँ मैं
बजता ही रहा हूँ मैं
ह्म ह्म

Curiosità sulla canzone Ghunghroo Ki Tarah Bajta Hi Raha di Kishore Kumar

Chi ha composto la canzone “Ghunghroo Ki Tarah Bajta Hi Raha” di di Kishore Kumar?
La canzone “Ghunghroo Ki Tarah Bajta Hi Raha” di di Kishore Kumar è stata composta da RAVINDRA JAIN, Raj Kavi Indit Singh.

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