Kath Ke Re Naiyiya (Chhath Geet)

Shiv Hari Fauji

मुखडा
काठ के रे नईया गंगा जी के तीरवा ताहि प बईठी आदित ×2
पहिला अरघिया लेके रे जाले , जाले की दिन गईले बीत .... काठ के रे नईआ ...
अन्तरा
निरखे तिवईया अचरा में लोरवा , असरा में रहब देव राउरि जी भोरवा ×2
झारी के रे पईया,अशुआ गिरावस, गिरेला बन के रे शीत ...पहिला अरघिया लेके रे....
अन्तरा
ओझल सुरतिया होत रे ललईआ, सुखवा के आश देव, हरिल बलईआ×2
शिव हरि कल्पना के , बस इहे सपना , बाड़े रे मन भयभीत ... पहिला अरघिया लेके

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