IK ISHQ AGAR HOTA
Farruki Khawaja, Mehboob Khan
अँधेरा ही अँधेरा है, उजाला हो नहीं सकता
शबे फ़ुरक़त के मारों का, सवेरा हो नहीं सकता
तेरा दावा मोहब्बत का, चमकता चाँद है गोया
जिसे हम छू नहीं सकते, हमारा हो नहीं सकता
इक इश्क़ अगर होता क्या रंगे दिगर होता
आँसूं नहीं पलकों पे इक शोलाये तर होता होता
गर हसरते गिरया से दामन तेरा तर होता
हर शाख़ हरी होती हर गुल गुले तर होता
इक क़तराये पैहम से पत्तर पे असर होता
इक ज़रबे मुसलसल से दीवार मैं दर होता
कुछ शम्में जलाते तुम कुछ फूल खिलते तुम
फिर बात अगर करते बातों मैं असर होता