Khol Kar Bahon Ke Do

GULZAR

खोलकर बाँहों के दो उलझे हुए मिसरे
हौले से चूमके दो नींद से छलकी पलकें
होंठ से लिपटी हुई जुल्फ़ को मिन्नत से हटाकर
कान पर धीमे से रख दूँगा जो आवाज़ के दो होंठ
मैं जगाऊँगा तुझे नाम से ‘सोनाँ
और तुम धीरे से जब पलके उठाओगी ना, उस दम
दूर ठहरे हुए पानी पे सहर खोलेगी आँखें
सुबह हो जाएगी तब सुबह ज़मीं पर

Curiosità sulla canzone Khol Kar Bahon Ke Do di Gulzar

Chi ha composto la canzone “Khol Kar Bahon Ke Do” di di Gulzar?
La canzone “Khol Kar Bahon Ke Do” di di Gulzar è stata composta da GULZAR.

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