Aaj Phir Chaand Ki Peshaani Se Uthtaa Hai Dhuaan
GULZAR
आज फिर चाँद की पेशानी से उठता है धुआँ
आज फिर महकी हुई रात में जलना होगा
आज फिर चाँद की पेशानी से उठता है धुआँ
आज फिर महकी हुई रात में जलना होगा
आज फिर सीने में सुलकति हुई वज़नी साँसें
फट के बस टूट ही जाएँगी, बिखर जाएँगी
आज फिर जागते गुज़रेगी तेरे ख्वाब में रात
आज फिर चाँद की पेशानी से उठता है धुआँ