Yunhi Baras Baras Zara Zara
Sameer, Nishit Basumatary
यूँ ही बरस बरस काली घटा बरसे
हम यार भीग जाएँ इस चाहत की बारिश में
तेरी खुली खुली लटों को सुलझाए
तू अपनी उँगलियों से
मैं तो हूँ इसी ख्वाहिश में
सर्दी की रातों में
हम सोये रहें है एक चादर में
हम दोनों तन्हाँ हो
ना कोई भी रहे इस घर में
ज़रा ज़रा महेकता है बहेकता हैं
आज तो मेरा तन बदन
मैं प्यासा हूँ
मुझे भर ले अपनी बाहों में