Rat Ke Pichhale Paharo Mein
रात के पिछले पहरो में
तुम क्या जानो हम क्यों रोये
रात के पिछले पहरो में
तुम क्या जानो हम क्यों रोये
रात के पिछले
आंसू ना थमे
दुःख सो ना सका
आंसू ना थमे
दुःख सो ना सका
तक हर के टारे भी सोये
रात के पिछले पहरो में
बिरहा की घटाये ऐसी उठि
बिरहा की घटाये ऐसी उठि
बिन गरजे बादल बरस गए
ऐसे घनघोर अंधेरे में
हमने कितने मोती खोये
रात के पिछले पहरो में
बेदर्दी तुम क्या समझोगे
बेदर्दी तुम क्या समझोगे
क्या बीती थी अपने दिल पर
जब आग भरी बरसातों में
आँखों ने अँगरे बोये
रात के पिछले पहरो में
तुम क्या जानो हम क्यों रोये
रात के पिछले पहरो में