Chaa Rahi Kali Ghata
छा रही काली
घटा जिया मोरा लहराए है
छा रही काली घटा
सुन री कोयल बावरी तू
सुन री कोयल बाँवरी तू
क्यूँ मल्हार गाए है
छा रही काली घटा जिया मोरा लहराए है
सुनो ना
सुनो ना सुनो ना
सुनो ना
दिल की तो ज़ुबान नहीं
मगर यह बोलता है तुमसे जो
पूछ लो, पूछो ना
यह धड़कनो में क्या छुपा रहा है
आ के खुद ही जान लो
मैं कैसे करूँ बयान
के दरमियाँ हिजाब हैं
कि मेरी पीहू-पीहू में
दर्द बे-हिसाब हैं
मैं कैसे करूँ बयान
के दरमियाँ हिजाब हैं
कि मेरी पीहू-पीहू में
दर्द बे-हिसाब हैं
आय पपीहा आ इधर मैं भी सरापा दर्द हूँ
आम पर क्यूँ जम रहा है मैं भी तो ऐसी जर्द हूँ
फर्क इतना है कि उस में
फ़र्क़ इतना है कि उस में
रस है मुझ में हाए है
छा रही काली घटा
सारे आज़ारों से बढ़ कर
इश्क़ का आज़ार है
आफ़तों में जान ओ दिल का डालना बेकार है
बेवफा से दिल लगा कर
बे-वफ़ा से दिल लगा कर क्या कोई फल पाए है
छा रही काली घटा
आए पपीहा
चुप खुदा के वास्ते तू हो ज़रा
रात आधी हो चुकी है
अब तुझे क्या हो गया
आए पपीहा
चुप खुदा के वास्ते तू हो ज़रा
रात आधी हो चुकी है
अब तुझे क्या हो गया
तेरी पी पी से पपीहा
तेरी पी पी से पपीहा पी मुझे याद आए है
च्छा रही काली घटा
जीया मोरा लहराए है
मैं कैसे करूँ बयान कि दरमियाँ हिजाब हैं
कह मेरी पीहू पीहू में दर्द बे-हिसाब हैं
मैं कैसे करूँ बयान कि दरमियाँ हिजाब हैं
कह मेरी पीहू पीहू में दर्द बे-हिसाब हैं
मैं कैसे करूँ बयान कि दरमियाँ हिजाब हैं
कह मेरी पीहू पीहू में दर्द बे-हिसाब हैं
च्छा रही काली घटा आ जिया मोरा लहराए है
च्छा रही काली घटा आ जिया मोरा लहराए है