Koyaliya

Praveen Kumar, Vijay Verma

सब कुछ है और
कुछ भी नही है
मैं हू कही और
दिल ये कही है
ऊ.. रोज रोज बनते
रोज टूट जाते है
चाँदनी मेरे घर
तक आके लौट जाती है

दर्द का मौसम सोच का आलम बेसूध है
सांसो की सरगम ऐसे मई जिया को
कोई क्या संजाये सपेरे मोहे बिरहा सताए
उन बिन कच्चू सोहवे निशानिया
पारी बीजूरिया चमके
जियरा मोरा दर पर को
को कोयलिया कुक सुनावे

इतना संदेशा मोरा
उनसे कहीयो जाए
उन बिन जीओया मोरा मिटसो जाए
उन बिन जीओया मोरा मिटसो जाए
उन बिन जीओया मोरा मिटसो जाए
उमंगे जो मान पर मोरी
अल मोरा सैया घरण आवे
कोयलिया कुक सुनावे
सख़िरी मोरी बिरहा सातवे
अलबेल कच्चू ना सुहावे
निसान्दुयरी पारी बीजूरी
चमके जियरा मोरा तड़पवे
कोयलिया कुक सुनावे कुक सुनावे
ऊ कोयलिया कुक सुनावे कुक सुनावे

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