Panchi Ud Gaya
MOHAN KANNAN
मंजिल दूर थी
धीमी चाल थी
उड़ती धूल में
आँखें लाल थीं
चलते चलते खुद
रास्ता मुड़ गया
तुझको देख के
पंछी उड़ गया
हम्म हम्म हम्म हम्म हम्म हम्म हम्म
हम्म हम्म हम्म हम्म हम्म हम्म हम्म
हम्म हम्म हम्म हम्म हम्म हम्म हम्म
हम्म हम्म हम्म हम्म हम्म हम्म हम्म
हम्म हम्म हम्म हम्म हम्म हम्म हम्म
हम्म हम्म हम्म हम्म हम्म हम्म हम्म
थोड़ा सा जूड़ा
ज़्यादा बट गया
कितना फूल के
गुब्बारा फट गया
किस्से में नया
पन्ना जुड़ गया
तुझको देख के
पंछी उड़ गया
किसने क्या सुनी
किसने क्या कही
आधी रात थी
आधी ही रही