Baarish

Kumar Mrityunjay Singh, Prabuddha Banerjee

घर में बजती धुन को सुनकर छम से कूदी बारिश आई
और है कोहरे की वो चादर खिड़कियों पे खड़ी मुस्काई
घर में बजती धुन को सुनकर छम से कूदी बारिश आई
है हवा के संग उड़ती कुछ फुहारे तितलियों सी
आके बैठी मेरे दर पे जैसे वो कुछ कहने आई
घर में बजती धुन को सुनकर छम से कूदी बारिश आई
और है कोहरे की वो चादर खिड़कियों पे खड़ी मुस्काई

सर्द रातों में ठीकक कर बैठे बाहर रास्तों पर
सर्द रातों में तिकक कर बैठे बाहर रास्तों पर
पूछती है आते जाते लोगो से यह कुछ घबराए
बादलों में खो चुकी कुछ गाल पर रख कर हथेली
अपनी ही बूँदों की लड़ियों में खड़ी है वो अकेली
भीगा तन है, नाम है आँखें फिर भी हसती खिलखिलाके
मेरे घर में हस्ते गाते जैसे है वो रहने आए
है हवा के संग उड़ती कुछ फुहारे तितलियों सी
आके बैठी मेरे दर पे जैसे वो कुछ कहने आई
घर में बजती धुन को सुनकर छम से कूदी बारिश आई

यादों की लेकर खजाने, आई सबको यह मनाने
पोछती है गीले हाथों से मेरी भीगे सीसाने
यादों की लेकर खजाने, आई सबको यह मनाने
पोछती है गीले हाथों से मेरी भीगे सीसाने
सबको भुलाके ना जाने यह जाए कहाँ
खोजती है सबकी आँखें, कौन आया था यहाँ पे
सबका मॅन वो भरने आई
और है कोहरे की वो चादर खिड़कियों पे खड़ी मुस्काई
आके बैठी मेरे दर पे जैसे वो कुछ कहने आई

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