Jugni
है मन मौजी ये धड़कने ना किसी की माने रे
जो रमजावे यों प्रीत मैं तो खाक भी छाने रे
है मन मौजी ये धड़कने ना किसी की माने रे
जो रमजावे यों प्रीत मैं तो खाक भी छाने रे
एक दीदार को जगबार दू सुन कमली रे
है मझधार के उस पर तू पर ठोर तू अपनी रे
हाय रे मेरी जुगनी ओ जुगनी मेरी जुगनी वे
एक रट जपनी हमने जपनी वे
हाय रे मेरी जुगनी ओ जुगनी मेरी जुगनी वे
प्रीत अब अपनी नहीं जुकनी वे
ना इश्क़ की आसान है राह तो हम भी है मन मौजी
लिखने चले खुद अपने ही अफ़साने रे अफ़साने रे
हो ओ दिल की लगी अगर है गुनाह तो हर मुकाम पर होगी
इक दास्तान और हर गली मैखाने रे
मदमस्त मलंग अब चल पड़ी है इश्क़ अलख सर पे अडी
बन गीत है लब पर ये ढली हाय रे
मदमस्त मलंग अब चल पड़ी है इश्क़ अलख सर पे अडी
बन गीत है लब पर ये ढली हाय रे
जुगनी हाय जुगनी मेरी जुगनी वे
एक रट जपनी हमने जपनी वे
हाय रे मेरी जुगनी ओ जुगनी मेरी जुगनी वे
प्रीत अब अपनी नहीं जुकनी वे
जुगनी ओ जुगनी अब प्रीत ना अपनी जुकनी
जुगनी ओ जुगनी बस एक ही रट हमने जपनी जपनी
जुगनी ओ जुगनी अब प्रीत ना अपनी जुकनी
जुगनी ओ जुगनी बस एक ही रट हुन जपनी जपनी